तेरी याद हर दम सताती है क्यूँ
दीवाना मुझे ये बनती है क्यूँ
कोई नज़्म लिख कर के खामोश हूँ मैं
ये जज़्बात में मुझको लाती है क्यूँ
हवा खुशनुमा वादियां भी हंसी है
तेरी याद मुझको दिलाती है क्यूँ
बहुत कुछ है कहना पर खामोश हूँ मैं
मुझे शर्म सी जाने आती है क्यूँ
छुपी है कसक तुझको पाने की दिल में
ये ख्वाहिश दिल को जलती है क्यूँ
बसी है निगाहों में सूरत तुम्हारी
नज़र हर जगह मुझको आती है क्यूँ
तेरी याद आते ही ऑंखें ना जाने
अश्कों की झाड़ियाँ लगाती है क्यूँ
जुबाँ चुप है लेकिन ये आँखें सभी को
वो राजे मोह्हबत बताती है क्यूँ
वो शायद करेंगे मेरे इन्तजार
यही आस दिल में न जाती है क्यूँ
तेरा जिक्र छोड़कर मैं चला था
ज़ुबाँ पर वही बात आती है क्यूँ
कभी छोड़कर मैं चला जिन गली को
वो गलियां फिर मुझे बुलाती है क्यूँ
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